छाँव भी लगती नहीं अब छाँव [कविता] - लाला जगदलपुरी

हट गये पगडंडियों से पाँव / लो, सड़क पर आ गया हर गाँव। / चेतना को गति मिली स्वच्छन्द, / हादसे, देने लगे आनंद / खिल रहे सौन्दर्य बोधी फूल / किंतु वे ढोते नहीं मकरंद। / एकजुटता के प्रदर्शन में / प्रतिष्ठित हर ओर शकुनी-दाँव। / हट गये पगडंडियों से पाँव / लो, सड़क पर आ गया हर गाँव। / आधुनिकता के भुजंग तमाम / बमीठों में कर रहे आराम / शोहदों से लग रहे व्यवहार / रुष्ट प्रकृति दे रही अंजाम। / दुखद कुछ ऐसा रहा बदलाव / छाँव भी लगती नहीं अब छाँव। आगे पढ़ें... →

कवि डा. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ जी के सान्निध्य में - डा॰ महेन्द्रभटनागर

ग्वालियर-उज्जैन-इंदौर नगरों में या इनके आसपास के स्थानों (देवास, धार, महू, मंदसौर) में वर्षों निवास किया; एतदर्थ ‘सुमन’ जी से निकटता बनी रही। ख़ूब मिलना-जुलना होता था; घरेलू परिवेश में अधिक। जा़हिर है, परस्पर पत्राचार की ज़रूरत नहीं पड़ी। पत्राचार हुआ; लेकिन कम। ‘सुमन’ जी के बड़े भाई श्री हरदत्त सिंह (ग्वालियर) और मेरे पिता जी मित्र थे। हरदत्त सिंह जी बड़े आदमी थे; हमारे घर शायद ही कभी आये हों। पर, मेरे पिता जी उनसे मिलने प्रायः जाते थे। वहाँ ‘सुमन’ जी पढ़ते-लिखते पिता जी को अक़्सर मिल जाया करते थे। ‘सुमन’ जी बड़े आदर-भाव से पिता जी के चरण-स्पर्श करते थे। लेकिन, ‘सुमन’ जी में सामन्ती विचार-धारा कभी नहीं रही। आगे पढ़ें... →

भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति [आलेख] - डॉ. काजल बाजपेयी

संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र रूप का नाम है जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने, खाने-पीने, बोलने, नृत्य, गायन, साहित्य, कला, वास्तु आदि में परिलक्षित होती है। संस्कृति का वर्तमान रूप किसी समाज के दीर्घ काल तक अपनायी गयी पद्धतियों का परिणाम होता है। मनुष्य स्वभावतः प्रगतिशील प्राणी है। यह बुद्धि के प्रयोग से अपने चारों ओर की प्राकृतिक परिस्थिति को निरन्तर सुधारता और उन्नत करता रहता है। सभ्यता से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है जबकि संस्कृति से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है। मैं बचपन से दो प्रकार की संस्कृतियों के बारे में सुनती आ रही हूँ। भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य संस्कृति या अंग्रेजी संस्कृति।  आगे पढ़ें... →

“मैणत री कमाई” [ मारवाड़ी कहानी ]- लेखक - दिनेश चन्द्र पुरोहित


 दिनेश चन्द्र पुरोहित रचनाकार परिचय:-
लिखारे दिनेश चन्द्र पुरोहित dineshchandrapurohit2@gmail.com अँधेरी-गळी, आसोप री पोळ रै साम्ही, वीर-मोहल्ला, जोधपुर.[राजस्थान]
मारवाड़ी कहानी “मैणत री कमाई” लेखक - दिनेश चन्द्र पुरोहित लिखारे [लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित] री मूल किताब ‘याद तुम्हारी हो’ सूं लियोड़ी कहानी प्रकासक राजवीणा मारवाड़ी साहित्य सदन, जोधपुर. [राजस्थांन]. [पहलौ संस्करण २०१६]

“ मैणत री कमाई ” लिखारे दिनेश चन्द्र पुरोहित

टेक्सी चलावातौ ड्राइवर, मोबाइल माथै बातां करतौ जा रियौ हौ! गाडी मांय बैठ्या चांद कौरसा नै भळै अबै फ़िकर हूवण लागी, क करै औ भलौ आदमी पूगावेला हवाई अड्डौ ? पण औ करमठोक ड्राइवर, करेऊँ मचकावतौ जा रियौ है मोबाइल ? कालै तौ है, होळी रौ दिण, अर इण नुवा दिण म्हनै परिवार रै साथै रैवणौ घणौ ज़रुरी! पण औ करमठोक ड्राइवर, मोबाइल नै छोड़ै ई कोयनी...! ना तौ औ दैखै बखत, अर ना दैखै गेलौ...औ भलौ मिनख लिजा कटै रियौ है ? बस, औ गधेङौ तौ, मोबाइल रै माथै अेक इज़ बात कैवतौ जा रियौ है क “मालक म्हारै हिरदै माथै चोट लागग्यी सा” हमै कांई करूं, म्हारी मां ? पैली ठाह व्हेती तौ, दूजी टैक्सी करवा देती!”

हमै करै कांई, चाँद कौरसा ? छेवट टैम बितावण सारुं, अबै वै ड्राइवर री बातां रै मांय रूचि लेवण लागग्या! अर सोचण लाग ग्या, क “इन्नी आ बात कीकर गळै उतारां, क इन्नौ दिल टूटग्यौ ?” कांई तौ इन्नी उमर है, अर कैङी मसीनी ज़िन्दगी औ बिता रियौ है! कठै इन्नै टैम मिळतौ व्हेला, किणी छोरी सूं दिल लगावण वास्तै ? ज़रै पछै कीकर चोट लाग सकै, इण गधा रै दिल माथै ? इन्नौ दिल कांई, कांच रौ रमेकङौ है...जिकौ इण तरै झट, टूट जावै ? पछै औ गधेङौ, बार-बार क्यूं दिल टूटण री बात करतौ जा रियौ है ?

अबै चांद कौरसा पैली सूं ज़्यादा इण ड्राइवर री बातां माथै ध्यान देवण लागग्या है, आगेली बातां सुणतां-सुणतां व्यानै औ मालुम पङियौ, क “जिन्नू अजेतांई औ ड्राइवर बातां करतौ जा रियौ है, वौ मिनख आख़िर लुगाई नी व्है नै मरद है! अबै औ ड्राइवर सामला मिनख नै विगतवार आपरी सफ़ाई देवतौ यूं कैवतौ जा रियौ हौ, क “किण तरै वौ आपरी लुगाई नै आख़िर तांई समझावतौ रैयौ, के भली आदमण स्हेर में दूध री किल्लत चाल रयी है! ख़ाली टैमौ-टैम अर वाजिब दर में डेरी रौ दूध इज़ मिळै, उण सारुं लम्बी-लम्बी लैणा लागग्या करै! अठी नै बैंक मांय कांम करण्या, उण रा पड़ोसी सिरे मलसा रै देण घणी! क्यूंकि उणारी बहू, दोजीवायती ठहरी! वै इत्ती लम्बी लैण में, ऊब नी सकै! अठी देखौ बम्बई में सैंग दफ़्तर आघा-आघा आयोड़ा है, अबै कै तौ सिरे मलसा दूध री लैण मांय ऊबै कै वै दफ़्तर जावै ?”

अबै औ ड्राइवर मोबाइल बंद कर नै, खून्जै मांय मोबाइल धरै! अर पछै, गाडी रौ होरन मारतौ जावै! क्यूंकि चौराया माथै कैई गाड़ियां जाम व्हेग्यी है, पुळस वाळौ बार-बार सीटियाँ बज़ावतौ जा रियौ हौ! औ हाल दैख नै ड्राइवर बोल्यौ क “बैनजी सा, ट्रेफिक व्हेग्यौ जाम! पांच मिनट पैली इन्नै खुलण रौ नांम ई मत लौ! कठै ई थाणौ मौङौ तौ नी व्हेरियौ है, बैनजी सा ?” चांद कौरसा मुळक नै पङूतर दीधौ, क “थूं फ़िकर कर मती, हवाई अड्डा माथै जावण सारुं घंटा भर पैली निकळी हूँ! पौंछ जावां रै, टैम माथै! थूं तौ औ बता, क थारै घरै तौ दूध पूग जावेला...पछै थूं फ़िकर कैन्नी करै ?” वौ भोळौ मूंडौ बणाय नै यूं कैवण लागौ, क “बैनजी सा, फ़िकर क्यूं नी करूं ? सिरे मलसा म्हारा पड़ोसी है, व्यांरी बेर दोजीवायाती है सा, अबार उणारै छैह्ळौ महिनौ चाल रियौ है...इण बखत लम्बी लैण में ऊबणा सूं व्यांरै सरीर नै नुक्साण पौंछ सकै सा! कालै होळी रौ दिण है सा, घर में कोई जिजमान आ जावै तौ पछै...” चाणचूकै जाम हट गियौ, अर वौ आगै की नी बोल नै गाडी इस्टार्ट करण ढूकौ! अबै गाडी सीधा-सपाट मार्ग माथै आयग्यी, अर हवा सूं बातां करण ढूकी! चांद कौरसा भळै जोधपुर स्हेर री लुगाई ठेरिया, वै बिणा बंतल करियां कीकर रैय सकै ? झट बोल पड़िया क “पण थूं लोगां रा दुःख दैख नै क्यूं दूबळौ व्हेतौ जा रियौ है ?” बालां नै अेकण कन्नी झटकौ दे नै वौ बोल्यौ, क “बैनजी सा, आपां इंसान हां...जिनावारां सूं ज़ादा विकसित! जठै अेक जिनावर दूजा जिनावर री मदद करतौ रैवै, उठै आपां मांय किसौ पांणी मरिजै ? कै आपां मांय सगति ख़तम व्हेग्यी, कै आपां लोगां नै ख़ाली आपाणौ सुवारथ इज़ दीखै ? मिनखां नै जिनावारां सूं दो क़दम आगै बढणौ चाहिजै, व्यानै तौ अेक-दूजा री मदद बिणा कैयां करणी चाहिजै! आज़ मैं सिरे मलसा री मदद करूं, तौ कालै सिरे मलसा दो क़दम बढ़ नै म्हारी मदद करेला! औ इज़ खलक़त रौ क़ायदौ है, इण कारण इज़ आपाणौ समाज दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करतौ रैवै! म्हारौ औ कैवणौ है, क मदद करणौ सामाजिक प्राणी रौ धरम व्या करै सा!” इत्तौ कैय नै, वौ गाडी रौ होरन ज़ोरां सूं बजावण ढूकौ! अबै वौ साम्ही कांई दैखै, क गाडी रै रस्ता बिचै अचाणचक साम्ही आयौ अेक कुत्तङौ किळियावता थकौ भाग छूट्यौ! आगै ऊबौ कुत्तङा रौ झुण्ड, आपरा साथी नै आफ़त मांय दैखतांई वै भळै भूसता-भूसता गाडी रै लारै रपटिया...पण गाडी री रफ़्तार घणी बधयोङी ही, जिन्नू वै बिचारा गाडी पकड़ नी साक़िया! पछै कांई ? थाक परा नै, छेवट व्यानै ढबणौ पङियौ! ढबिया, तौ कांई व्यौ ? वै तौ ऊबा-ऊबा, लारै ऊँ भूसता रैया! औ वाकयौ दैखतांई ड्राइवर कैवण लागौ, क “दैख लौ, बैनजी सा! आपरा साथी नै आफ़त मांय जाण नै, अै कुत्तङा इण गाडी लारै कीकर दौळा पड़िया ? अै भी अेक-दूजा री मदद करणी नी भूलै, ज़रै आपां सामाजिक प्राणी व्है नै आ बात कीकर भूलता जा रिया हां ? इंसानियत रौ मुतलब है, अेक-दूजा री मदद करणी...अर, इण काण-क़ायदा नै आपां कीकर भूल सकां ?” अै ड्राइवर री कैयोड़ी बातां, अबै चांद कौरसा नै अखरण लागग्यी! जठै अै खुद चांद कौरसा अेन.जी.ओ. रा कर्मठ सामाजिक कारिकरता है, उठै औ गेलसफौ इयांनै इज़ समाज-सेवा रौ पाठ पढ़ावतौ जा रियौ है ? अर, अबै व्हिनौ आ मुफ़ाखिरत किण तरै तोङां ? औ विचार नै चांद कौरसा व्हिनै यूं कैवण लागा, क “भाई रै, आज़कल ज़मानौ चोखौ कोयनी रै! आपां लोगां नै आपाणै हाल में इज़, मस्त रैवणौ चाहिजै! आपाणौ पड़ोसी कांई करै, अर कांई नी करै...इण बात रौ, की ध्यान नी राखणौ! अबै दैख, शास्त्री नगर कोलोनी मांय म्हारौ बंगलौ है! म्हारी पड़ोसण है, साव निक्कमी! व्हिनै घरै घणा ई नौकर-चाकर कांम करतां रैवै, ज़रै व्हिनै कन्नै की कांम कोयनी! बस ख़ाली मटर-गस्ती करणी अर बोलकोनी में बैठ नै बारै रा नज़ारा लेवणा, इन्नै सिवा व्हिनै की कांम दीसै कोयनी! अेक दिण री बात बताऊँ, थन्नै! अेक वळा वा बैठी ही बोल्कोनी मांय, बैठी-बैठी वा सड़क माथै अेक गुण्डा नै चाकू ल्योङौ दैख्यौ! ज्यूं ई उण सड़क माथै अेक सेठ गुजरतौ दीस्यौ, व्हिनै दैखतांई व्हिनै चाकू मार नै व्हौ भाग जावै! पछै कांई ? वा बैठी-बैठी, व्हीनै चाकू मारतौ सावळ दैख लेवै! चाकू मारतां ई, वौ सेठ मर जावै! सिंझ्या री वेळा पुळस तफसीस करन्नै आयी, वा गेलसफ़ी बिणा बुलाया पुळस वाळां रै कन्नै जाय पूगी अर बिणा पूछ्यां उण गुंडा री ओलखाण परी बतायी! उण ओलखाण रै तहत, वौ गुण्डौ पकङीज़ जावै! इण कारण अबै वौ गुंडौ, इण लुगाई सूं बैर बांध लेवै! कुछ दिण बाद, वौ जमानत रै माथै छूट जावै! अबै तौ इण महराणीसा रौ जीवणौ दूभर व्है जावै, कदेई तौ उण लुगाई रा घरधणी नै मारण री धमकी देय नै जावै...तौ कदेई गेला बिचै, व्हीनी जवान छोरी रै साथै छोर-छिंदी कर नै व्हिनै परेस्यान करै! कदेई उण लुगाई नै, व्हीनी बेटी अगवा करण री धमकी मिळै! इण तरै उण लुगाई रौ जीवन नरक बणा देवै, औ गुंडौ! अबै बता, क आ भलाई करणी व्हिनै कांई कांम आई ? चुप-चाप बैठी रैवती, तौ आ देण नी व्हेती!”

इत्तौ कैय नै चांद कौरसा बिसांई खावण लागा, अर व्यांरी सांसा धौंकनी रै तरै चालण लागी! इण आगै चांद कौरसा सूं इत्तौ इज़ बोलिज्यौ क “भाई रै..म्ह म्हनै सांस दौरो..” पछै कांई ? ड्राइवर झट अे.सी. बंद कर नै गाडी री सारी बारियाँ खोल देवै! अर, पछै सायंती सूं चांद कौरसा नै कैवण लागै क “बैनजी सा! म्हनै लागै आपनै दमा री बीमारी है, आप पम्प लाया व्हौ तौ बारै काडौ!” पण चांद कौरसा सूं की बोलिज्यौ कोयनी, वै तौ आंगळियां रा इसारा सूं बतावण लागा क “वै पम्प लाया कोयनी!” औ सुणतांई ड्राइवर गाडी री रफ़्तार बधावण लागौ, अर रस्तौ बदळ नै झट गाडी नै अेक गळी में डाली! बठै अेक नरसिंग होम कन्नै लिजाय नै गाडी रोकी, अर इमरजेंसी में इतला करवा दी! इतला मिळतां ई वार्ड बोय स्ट्रेचर लेय नै आयौ, अर चांद कौरसा नै उण माथै सुवाण नै इमरजेंसी रूम में लेयग्यौ! डागदर साब, तत्कालीन उपचार दीधौ! अबै चांद कौरसा री सांसा सामान्य हूवण लागी, अबै वै आंख्यां खोल नै दैखण लागा डागदर साब नै! डागदर साब इण बखत ड्राइवर नै कैय रिया हा, क “भाया, थूं इयांनै टैम माथै अठै ले नै आइग्यौ अर इयांनै दमा रा अेटेक सूं बचाद्यौ!” इण पछै केपसूल अर दमा रौ पम्प देय नै, चांद कौरसा नै डिस्चार्ज परौ करै! डिस्चार्ज व्है नै, चांद कौरसा रिसेप्सन माथै माथै जाय नै कैयौ, क “भाई थूं म्हारै इलाज़ अर दवाइयां रा पैसा, लेय ले!” ज़रै व्हौ रिसेप्सन वाळौ बोल्यौ, क “किसा पैसा ? इलाज़ अर दवाइयां रा बिल रा पैसा, थाणा भाईजान चुका दिया है!” इत्तौ कैय नै, वौ गाडी कन्नै ऊबा ड्राइवर री तरफ़ आंगळी रौ इसारौ कीधौ! अबै गाडी कन्नै आय नै चांद कौरसा व्हीनौ मूंडौ ताकण लागग्या, अेहसान सूं दब्योङा चांद कौरसा रै मुंडा सूं अेक सबद नी बोलीजै! अैङौ लागतौ, क व्यांरी ज़बान तालू माथै चिपकग्यी व्है ? बस, ख़ाली प्रेम रा आऊंङा नैणां सूं ढळकण लागा! अबै ड्राइवर गाडी रौ दरुजौ खोल नै कैवण लागौ, क “बैनजी सा! अबै गाडी मांय बिराजौ!” पण चांद कौरसा हक्का-बक्का बण्योङा ऊबा रैयगया, अर पछै मुधरा सुर में कैवण लागा क “भाई रै, थूं दवाइयां अर इलाज़ रा पैसा जिका दिया... वै थूं म्हारै कन्नै सूं ले ले पाछा!” इत्तौ सुणतांई वौ मुळक नै कैवण लागौ, क “कांई काळी बातां करौ, अेक तरफ़ तौ आप म्हनै भाई कैवौ हौ...अर दूजी तरफ़ आप पीसा लैण-देण री बातां करौ हौ ? आप म्हारी गाडी मांय बिराज्या हा, इण गाडी नै मैं म्हारौ घर समझिया करूं! घरै आयोङा मिजमान री तबीयत मोळी व्है जावै, तौ मिजमान कन्नू इलाज़ अर तीमारदारी रा पैसा वसूल करीजै कांई ? अबै आप गाडी मांय बिराज़ जावौ, अबै प्लेन उङवा रौ बखत नज़ीक इज़ है! थाणै रामा पीर री कसम, अै लैण-देण री बातां करी तौ...” अबै वौ चांद कौरसा नै, माडाणी गाडी मांय बिठा नै गाडी इस्टार्ट कीधी!

गळी सूं गाडी निकळ नै, अबै गाडी मेन सड़क रै माथै आयग्यी! अबै आ गाडी हवा सूं बातां करण ढूकी! रास्ता में औ बातोकङौ ड्राइवर बोलण लागौ, क “केई बरसां पैली म्हारा मोटोड़ा बेनसा आपरी शास्त्री nagar कोलोनी मांय रैवता हा, व्यांरौ नांम आइचुकी बाई अर बेनोइसा रौ नांम माई दासजी...बैनजी सा, कांई आप उण दोणां नै ओळख्या कै नहीं ? आप जाणतां हुवोला, व्यांरै अेक बङौ गाय-भैस्यां रौ तबेलौ हौ!”

चांद कौरसा आपरै मगज़ माथै ज़ोर देय नै सोचण लागग्या, व्यांनै औ माई दासजी रौ नांम की पिछाणियोङौ लागण लागौ! जित्तै दूध री बातां याद आवतां ई, सारी बिसरयोङी यादां चितराम बण नै नैणां रै आगै छावण लागी!

अै दोणू बींद-बहू घणा स्याणा अर लिहाज़ी हा, दूजा लोगां री मदद करण में अेक क़दम आगै रैवता! लोगां री सेवा करण में, इण दोणां नै घणौ आणंद आवतौ! इण अमीर लोगां री कोलोनी मांय इण अमीरां री आंख्यां में, इणारौ झूपङौ अर औ तबेलौ घणौ खटकतौ! क्यूं क इन्नै आकती-पाकती वाळां मकानां री कीमत कमती आंकीज़ती ही! इण तरै अै दोणू ठावं इण अमीर लोगां री नज़रां में, ख़ाली रेसमी कपड़ा मांयलौ पैबंद रै सिवा की नी दीसतौ! अठै तौ अै कोलोनी वाळां चावता, क “अै आपरा दोनू ज़मीन रा प्लोट बेच नै, पाछा आपरै गाम जावै परा!”

अै दोणू बींद-बहू आपरा टाबरां नै भण्योङा दैखणी चावता हा, इण सारुं अै दोणू जणा बठै रा रैवासियां कन्नू व्यांरा पास व्योड़ा टाबरां री किताबां मांगता, तौ अै अमीर लोग मुंडा-मूंड इण दोणां नै साफ़ मना कर देवता! थोड़ी पांण पछै, व्यांरै साम्ही इज़ रद्दी वाळां नै वै किताबां बेच देवता! पछै कांई ? अै दोणू जणा उणीज़ रद्दी वाळां कन्नै जाय नै, वै इज़ किताबां आपरा टाबरां सारुं खरीद लावता! कोलोनी रै लोगां साथै इयांरौ बौवार घणौ ई चौखौ रैवतौ, पण अै कोलोनी वाळा माता रा दीना इयांरै दोणू जणां सारुं दिल मांय मैल इज़ राखता! अठै माई दासजी भळै कित्ता ई ईमानदार व्हौ ? पण इयांरै लोगां रै कांई फरक पड़ी, भळै माई दासजी इण लोगां री आंख्यां रै साम्ही भैस्यां रै थन सूं दूध काड नै सीधौ इण लोगां री बरनी मांय घालता....तौ भी अै लोग, माई दासजी री ईमानदारी माथै सक करणौ नहीं छोङता! अर पैसा देवती पांण, टाळम-टौळ करता रैवै! असल में, माई दासजी इण लोगां रै वास्तै हा कइं ? ख़ाली रेसमी कालीन में लागोङौ पैबंद, औरुं कांई ? कैया करै क “ऊपर वाळौ दिल दीधौ है, तौ दीधौ है गरीबां नै...पैसा वाळां नै लिछमी देय नै, औ ऊपर वाळौ व्यांनै पैसा खरच करण रा दिल सूं महरुम राख्यौ! अेक दिण सबाह-सबाह सिरे-दरुज़ा रौ कूठौ बाज्यौ, चांद कौरसा ऊठ नै दरुजौ खोल्यौ! साम्ही दीस्यौ, सामळी बैंक रौ चपरासी! व्हीनी जब्हा माथै फ़िकर री लैणा साफ़-साफ़ दीखती, वौ हङबङावतौ यूं बोलण लागौ क “बैनजी सा, माई दासजी री लुगाई रै प्रसव-पीड़ा चाल रयी है! मेहरबानी कर नै आप उठै पधारौ अर व्यांरी लुगाई नै आप संभाळौ, छेवट इण बखत अेक लुगाई इज़ व्यांनै सम्भाळ सकै! घर मांय अबार आईचुकी भाबी रै सिवा, कोई लुगाई घरै नहीं है! अर नी कोई गाम सूं इणारी रिस्तेदार लुगाइयां, अठै अजेतांई आयी है!” चपरासी री हड़बड़ावती आवाज़ सुण नै, चांद कौरसा रा घरधणी जाग जावै! नींद उछट जायां सूं वै भिंमरयोङा ऊठै, अर रीसाणा हुयोड़ा उण बापड़ा चपरासी नै फटकारता थकां कैवता जावै क “म्हारी लुगाई नै कांई थूं दायण समझै रै, गतगैळा ? जाऽऽ अठै ऊं, अर लिजा थारी लुगाई नै! बङौ आयौ उण माई दास रौ हेताळू बण नै...म्हारीज़ बैंक मांय कांम करै, अर हेताळू बणियौ उण माई दास रौ ?” मैनेजर साब री अैङी तल्ख़ आवाज़ सुण नै, औ बापड़ौ चपरासी दहलीज़ गियौ! अर जावण सारुं आपरा पग उठाया, पण यूं कांई उण बिचारा नै जावण दै ? अै तौ उणीज़ बैंक मांय मैनेजर है, जिण बैंक में औ चपरासी कांम कर रियौ है! पछै कांई ? वै तौ आकरा लबज़ा में ज़ोर सूं कैवण लागै, क “थन्नै भोळावण देय दूं, थारै जैज व्है जावै तौ दफ़्तर में अरजी बाळ नै जाइजै...जा फूट अबै, नींद आ रयी है!” इत्तौ कैय नै, वै लिहाफ ओढ़ नै सूय जावै! बिचारौ चपरासी अबै चांद कौरसा रौ मूंडौ ताकण लागग्यौ, के सायत चांद कौरसा द्या करता साथै चाल जावै ? पण अठै अै चांद कौरसा, कीकर व्हिनै साथै चालै ? अठै तौ व्यांनै आपरा घरधणी नै, हथाळी रा छाळा रै तरै राखणौ पङै! इयांरै वास्तै तौ दूजा मिनख रौ हेताळू बणनौ, ख़ाली घर में देण मोल लेवणी बराबर है! औ विचार नै, वै चपरासी नै रवाना हूवण रौ इसारौ परौ कीधौ! आख़िर, बिचारौ चपरासी मूंडौ उतार नै वहीर व्यौ! इण वाकया व्या पछै, दो साल बाद चुनाव रा दिण नज़ीक आवण लागा! लोगां नै नेतावां सूं कांम करावण री हूस पैदा हुवै! अबै कोलोनी मांय, अेक इस्कूल अर अेक असपताळ खोलण री मांग उठण लागी! अेक दिण कोलोनी मांय, जन-सभा आयोजित व्ही, जिण मांय अेक मंत्रीजी पधारिया! अर आय नै इस्कूल अर अेक असपताळ खोलण री घोषणा तौ परी कीधी, पण साथै अेक सरत परी राख दी क “अै दोणू जदै इज़ बणेला जद आप कोलोनी वाळां ठावी ठौड़ माथै ज़मीन रै प्लोटां रौ बंदोबस्त कर दौला!”

इण तरै मंत्रीजी कोलोनी रा मोटवीर मिनखां सूं अरदास कर नै औ कैयौ क “थे लोग ठावी ठौड़ माथै ज़मीन रौ बंदोबस्त कर दौला, तौ आ सरकार उण माथै दोणू ठावं री इमारत ज़रूर बणा देवेला!” आ बात सुणतां ई लोगां रा मुंडा थाप खायग्या, अर पछै अेक-दूजा रा मुंडा ताकण लागग्या! अै कोलोनी रा लोग अैङा धन्ना सेठ ठेरिया, जिका अेक प्लोट कांई अै तौ कई ज़मीन रै प्लोटां रा मालिक है! इयांरै खरीद्योड़ा प्लोटां री कीमतां आसमान नै छूवण लागग्यी, अबै कोई कालौ हुई जिकौ खुद रौ नुक्साण करा नै ज़मीन दान करेला ? अठै रा लोगां रा दिल में, ख़ाली पैसा बांटण री इज़ अणूती हूस बणी रैवै...वै कांई दान री महिमा समझेला ? जिण उमंग सूं मंत्रीजी नै अठै बुलायौ हौ, अबै वौ जोस लोगां रै मांय कठै है ? छेवट मंत्रीजी लाऊड इस्पिकर पकड़ नै ज़ोरां सूं कैवण लागा क “कांई थाणी कोलोनी मांय अैङौ अेक ई मिनख कोयनी, जिकौ दधीची, राजा शिवी, राजा करण अर राजा बलि रै तरै पावन कांम रै वास्तै ज़मीन रा दो टुकड़ा दान करण री हीमत दीखा सकै ?”

बैंक रै बारै बैंक रा चपरासी सूं बात कर रिया माई दासजी रै कानां मांय, आ मंत्रीजी री बात पड़ै! जित्तै व्यांनै मीटिंग सूं ऊठ नै आवतौ अेक मिनख दीस्यौ! व्हिनै रोक नै माई दासजी उण सूं पूरी जानकारी परी लीवी! पूरी बात सुण नै, वै मीटिंग में जाय पूगा! अर मंच माथै चढ़ नै मंत्रीजी सूं हाथ जोड़ नै अरदास करण लागा, क “मंत्रीजी, औ भलौ काम म्हारै हाथ सूं करवा दौ! बैंक रै साव कन्नै इज़ म्हारा दो कोर्नर प्लोट है, जिन्नारी साइज है दो सौ बाई दो सौ! अै दोणू प्लोट मैं म्हारा माताजी रै नांम सूं इण पावन कांम सारुं दान करणी चावूं हूँ सा!” इत्तौ सुणतां ई मंत्रीजी री आंख्यां फटी री फटी रैयग्यी, वै माई दासजी नै इचरच सूं दैखण लागग्या! आपरै अंतस मांय सोचण लागा, क “इत्ता मालदारां रै बिचै, ऊबौ औ फाटोङी धोती पैरण वाळौ मिनख कित्तौ मोटौ काळजौ राखै ?” सोचता-सोचता मंत्रीजी री आंख्यां सूं प्रेम रा आऊंङा परा ढळकिया, वै झट आगै बढ़ नै, माई दासजी नै गळै परौ लगायौ! अर मेज़ माथै मेल्योड़ी गुलाब रै पुस्पां री माळा उठाय नै माई दासजी नै पैराय दी, अर पछै आपरै पैरयोङौ साफौ उतार नै झट व्यांनै पैराय दियौ! इण पछै सैंग लोगां रै बिचै, व्यांरी तारीफां रा पुळ बांधण लागा! माई दासजी री तारीफां सुणतां ई, उण लोगां री आंख्यां सरम सूं नीचै झुकग्यी! केई माल दार लोगां रै हिवङै माथै, सांप लोटण लागग्या! इण वाकया रै बीत्या पछै, माई दासजी दोणू प्लोट ख़ाली कर नै, सरकार नै सूम्पद्या! घर-बिकरी रा सामान ल्यां आपरै गाम में पूगग्या, अर बठै वै खेती करण लाग जावै! अर साथै-साथै टाबरां नै स्हेर रा होस्टल में राख नै, व्यांनै उठै इज़ पढ़ावणौ चालू करद्यौ! पछै वै सरकार कन्नू लोन लेय नै, आपरै गाम में इज़ दूध री डेयरी खोलद्या करै! माई दासजी री ईमानदारी अर मैणत रंग लावै, व्यांरै इण बौपार में दिन-दूणी रात-चौगुनी तरक्की व्हेती रैवै! आज़ भळै इण कोलोनी मांय इस्कूल अर असपताळ री ऊबी इमारतां, माई दासजी अर व्यांरी घरवाळी आईचुकी बाई री याद दिरावै! अै इमारतां बठै सूं निकळता लोगां नै सीख देवती जावै, क “धन-दौलत सूं मिनख धनी कोयनी मानीजै! असली धनी वौ मिनख हुवै, जिन्नै हिवङा रै मांय दया रौ सागर बैवतौ हुवै! रिपिया-पैसा घणा व्हेणा सूं आदमी मालदार नहीं बाज्या करै, पैसौ तौ पातरिया रै कन्नै ई घणौ व्है...पण, व्यांरी समाज में कांई इज़्ज़त ? वा इज़ धन-दौलत चोखी जिकी मैणत कर नै कमाई व्है, अर वा नेक कांम में कांम आवती रैवै! अैङा नेक कांम मांय पैसा खरचण वाळां रौ दिल, विसाल व्हेणौ ज़रूरी है! गाडी चलावता ड्राइवर रै मोबाइल माथै घंटी आवै! घंटी री तेज़ आवाज़ सुण नै, चांद कौरसा रै विचारां री कड़ियां टूट जावै...अर, व्यांनै चेतौ परौ आवै! अबै व्यांनै कांन माथै मोबाइल धरयोङौ ड्राइवर दीसै, वौ मोबाइल माथै बोल रियौ हौ क ‘’कुण है, सा ? कांई फरमाओसा ?” व्हिनै इत्तौ बोलतां ई मोबाइल में जनानी आवाज़ निकळै क “राजूड़ा रा बापू! कांई फरमाओसा..फरमाओसा री रट लगा राखी हौ ? म्हूं बोलू हूँ, थाणा राजूड़ा री बाई! बात आ है सा, क म्हांऊ थाणौ कुम्हलिज़्योङौ मूंडौ दैखिजै कोयनी! हमै थे फ़िकर करौ मती! डेयरी रौ दूध लाय नै, थाणा सिरे मलसा रै घरै पूगाद्यौ है!” इत्तौ सुणतां ई, ड्राइवर रै मुंडा माथै मुळकाण छाय जावै! वौ फोन रै माथै आगै कैवण लागौ, क “भागवान, अबै थे कांई कर रिया हौ ?” पछै कांई.. फोन में हंसी री आवाज़ गूंजण लागी, हंसतां थकी व्हीनी घरवाळी आगै कैवण लागी क “पछै, कांई करती सा ? पाछी आयी घरै, अबै नैणा टाबर रा पुराणा गाबा लेय नै पाछी सिरे मलसा रै घरै जा रयी हूँ! बठै जाय नै सिरे मलसा री लुगाई नै लिजाऊंला जनाना असपताळ! व्यांरै दरद उठण लाग ग्यौ है! खुस खबर आवेला, ज़रै थान्नै पैली खबर करुंला! व्यांरौ पेट दैखतां ई, म्हनै तौ लागै सिरे मलसा रै ज़रूर छोरौ व्हेला! अबै मैं फोन धरुं हूँ, मौड़ो व्है रियौ है!” इत्तौ कैवतां ई, फोन रौ चोगौ क्रेडिल माथै धरण री आवाज़ आवै! मोबाइल बंद कर नै ड्राइवर मुळकाण छोड़तौ कैवण लागौ, क “बैनजी सा! लुगाइयां रै हिवड़ा री बातां, तौ मालक इज़ जाणै सा!” अबै हवाई अड्डौ साम्ही दीसण लागग्यौ, ड्राइवर गाड़ी री रफ़्तार कम कर दीवी! टैक्सी इस्टेण्ड माथै पूगा नै, गाडी रै ब्रेक मार नै व्हिनै रोकी! गाडी रौ दरुजौ खोल नै वौ बोल्यौ, क “बैनजी सा! थान्नै टैमौ-टैम, हवाई अड्डा माथै पूगाद्यौ हूँ! अबै आप सावळ पधारजौ सा, अर थाणी तबीयत रौ ध्यान राखजौ सा! आगै सूं कठेई बारै निकळौ ज़रै, दमे रौ पम्प साथै लिजावणी भूलजौ मती!”

अटेची ल्योड़ा चांद कौरसा हेटै उतरिया, उतरतां ई ड्राइवर री हथाळी माथै अेक हज़ार रिपिया रौ नोट धर नै बोल्या क “भाई, थूं अै हज़ार रिपिया पूरा राख लै!” इत्तौ कैय नै चांद कौरसा आगै पग बधावण लागा, पण वौ ड्राइवर आगै आय नै व्यांरौ रास्तौ रोक नै व्यांरी हथाळी रै माथै छ: सौ रिपिया खून्जै सूं काड नै परा धरिया अर कैवण लागौ, क “बैनजी सा, अै ख़ाली च्यार सौ रिपिया इज़ म्हारी मैणत री कमाई है! बाकी रा अै छ: सौ रिपिया रै माथै, म्हारौ कोई हक़ नी बणै! इणा नै पाछा आपरै पर्स मांय मेल दौ! अबै चालां सा, बाबो भली करै!” अर जाय नै आपरी ड्राइविंग सीट माथै बैठग्यौ, गाडी इस्टार्ट कर नै हाथ हिलावण लागौ! थोड़ी ताळ में वा गाडी नज़र सूं ओझल व्है जावै अर चांद कौरसा ऊबा-ऊबा गाडी रै लारै उड़ता धूड़ा रा गुब्बार नै दैखता रैय जावै!

लिखारे दिनेश चन्द्र पुरोहित

रैवास – अँधेरी-गळी, आसोप री
पोळ रै साम्ही, वीर-मोहल्ला,
जोधपुर. [राजस्थांन]
ई मेल
dineshchandrapurohit2@gmail.com

 
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