छाँव भी लगती नहीं अब छाँव [कविता] - लाला जगदलपुरी

हट गये पगडंडियों से पाँव / लो, सड़क पर आ गया हर गाँव। / चेतना को गति मिली स्वच्छन्द, / हादसे, देने लगे आनंद / खिल रहे सौन्दर्य बोधी फूल / किंतु वे ढोते नहीं मकरंद। / एकजुटता के प्रदर्शन में / प्रतिष्ठित हर ओर शकुनी-दाँव। / हट गये पगडंडियों से पाँव / लो, सड़क पर आ गया हर गाँव। / आधुनिकता के भुजंग तमाम / बमीठों में कर रहे आराम / शोहदों से लग रहे व्यवहार / रुष्ट प्रकृति दे रही अंजाम। / दुखद कुछ ऐसा रहा बदलाव / छाँव भी लगती नहीं अब छाँव। आगे पढ़ें... →

कवि डा. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ जी के सान्निध्य में - डा॰ महेन्द्रभटनागर

ग्वालियर-उज्जैन-इंदौर नगरों में या इनके आसपास के स्थानों (देवास, धार, महू, मंदसौर) में वर्षों निवास किया; एतदर्थ ‘सुमन’ जी से निकटता बनी रही। ख़ूब मिलना-जुलना होता था; घरेलू परिवेश में अधिक। जा़हिर है, परस्पर पत्राचार की ज़रूरत नहीं पड़ी। पत्राचार हुआ; लेकिन कम। ‘सुमन’ जी के बड़े भाई श्री हरदत्त सिंह (ग्वालियर) और मेरे पिता जी मित्र थे। हरदत्त सिंह जी बड़े आदमी थे; हमारे घर शायद ही कभी आये हों। पर, मेरे पिता जी उनसे मिलने प्रायः जाते थे। वहाँ ‘सुमन’ जी पढ़ते-लिखते पिता जी को अक़्सर मिल जाया करते थे। ‘सुमन’ जी बड़े आदर-भाव से पिता जी के चरण-स्पर्श करते थे। लेकिन, ‘सुमन’ जी में सामन्ती विचार-धारा कभी नहीं रही। आगे पढ़ें... →

भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति [आलेख] - डॉ. काजल बाजपेयी

संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र रूप का नाम है जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने, खाने-पीने, बोलने, नृत्य, गायन, साहित्य, कला, वास्तु आदि में परिलक्षित होती है। संस्कृति का वर्तमान रूप किसी समाज के दीर्घ काल तक अपनायी गयी पद्धतियों का परिणाम होता है। मनुष्य स्वभावतः प्रगतिशील प्राणी है। यह बुद्धि के प्रयोग से अपने चारों ओर की प्राकृतिक परिस्थिति को निरन्तर सुधारता और उन्नत करता रहता है। सभ्यता से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है जबकि संस्कृति से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है। मैं बचपन से दो प्रकार की संस्कृतियों के बारे में सुनती आ रही हूँ। भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य संस्कृति या अंग्रेजी संस्कृति।  आगे पढ़ें... →

बैना रौ पाट [ मारवाड़ी कहानी ]- - दिनेश चन्द्र पुरोहित

 दिनेश चन्द्र पुरोहित रचनाकार परिचय:-
लिखारे दिनेश चन्द्र पुरोहित dineshchandrapurohit2@gmail.com अँधेरी-गळी, आसोप री पोळ रै साम्ही, वीर-मोहल्ला, जोधपुर.[राजस्थान]


मिन्दर रा पाट ज़ोरां ऊँ ढक नै डोकरडी नाराणी बाई बड़-बड़ करती-करती मिन्दर ऊँ बारे आई! अर पछै दस पाँवङा आगै चाल नै, ऊखळ माथै कूङौ-करकट न्हाखै! पछै आदत ऊँ मज़बूर व्है नै, वा बड़ळा माथै मीट न्हाखै! चाणचूकै उठै उण डोकरी री नज़र, जाजौ री बाट नाळती सतभामा माथै पड़ जावै! उण सतभामा नै दैखतांई व्हिनौ गुस्सौ, सांतवा आसमान में जाय पूगौ! अर, वा ज़ोर-ज़ोर ऊँ हाका करती कैवण लागी “रोंडा, थारी जवानी माथै खीरा पङै! इण मिन्दर मांय, अठै आवौ ई क्यूं...काळौ मूंडौ कर नै..? कमसळ रोंडा थान्नै औ इज़ मिन्दर मिल्यौ, काळौ मूंडौ कर नै...?”                  
सतभामा भौंचकी व्योड़ी डोकरी रौ मूंडौ दैखण लागग्यी, के अै मांसा काळा व्है ज्यूं कांई बकता जा रिया है.....? चाणचूकै उण री मीट पड़ जावै कूङा माथै, जठै कूङा रे मांय पड़िया हा कांम लीदोङा निरोध [कंडोम] ! इण कंडोमां नै देखतां ई, व्हीनी आंख्यां फटी री फटी रैय जावै! लचका पड़ती, वा तौ अबै औ सोचण लागग्यी क “ कठै ई आ गेलसफ़ी डोकरी, इण खोटा कांम करण री दोसी म्हनै बापडी ग़रीब नै समझ रयी है, कांई...? क, औ खोटौ काम म्हूं इज़ करती व्हूला...अठै, रातै आय नै..?                         
अैङौ गन्दौ इलज़ाम लागणौ, आ सतभामा अबै कीकर सैन करै...? रीस रै मारै, उण रौ आखौ डील काम्पण लागौ...अठी नै इण बड़ळा माथै  माळौ घाल्योङा कागळा इण बापड़ी सतभामा रै माथा माथै चूंचा मारता, च्यारुमेर कांव-कांव करता थकां मंडरावण लागा! असल में बात आ ही, क गुग्गूङौ कागळा रा अंडा चुराय नै व्हेग्यौ कमसल छू मंतर! अबै इण कागळा रा झुण्ड नै औ कमसल गुग्गूड़ौ दीस्यौ कोयनी, पण आ साम्ही ऊबी सतभामा भळै दीसग्यी! उण बापड़ी नै इण कांम रौ दोसी माणता, व्हिनै माथा माथै चूंचा मारण लागग्या! बडेरा कैया करै, क “सूर चारौ चार नै जावै परा, अर लारै सूं बापड़ा भैंसा कूटिज़ता रैवै!” ई तरै बापड़ी सतभामा रै माथै बेवड़ी चोट लाग जावै! अेकै तरफ़ अै कमसल  कागळा चूंचा मार-मार नै व्हीनी टाट सूजा दैवै, अर दूजी तरफ़ आ काळी डोकरी चरितर माथै दाग लगावती जा रयी है! पछै कांई..? रीसाणी सतभामा रणचण्डी बण्योड़ी, निम्बली रै तरै बाड़ी बोलण ढूकै...क, “मांजीसा, कुण थाणै मिन्दरिया में पग धरै...? घर-गेटळी कमसल रोंड बळती व्हेला थाणै मिन्दर में..काळौ मूंडौ कर नै, जाय नै उठै बकौ..म्हनै बापड़ी गऊ सरीखी रै माथै, क्यूं मण्डता जा रिया हौ..अैङा इलज़ाम...? थाणै घर मांय बहू-बेटी है कोयनी, कांई...? जाय नै, व्यांनै सुणावौ!” अर इण पछै फेरूं बड़ बड़ावती रैयी, क कठै ऊँ आ जावै सिंझ्या पड़िया..अैङी कळजीबी डोकरियां, आय नै लोगां रा सुगन मोळा करै! अैङौ मिन्दर रौ ध्यान राखणौ हुवै, तौ पाट ढक नै इज़ क्यूं नी जावौ...? म्हूं तौ म्हारै बींद री बाट नाळ रैयी हूँ, अठै ऊब नै!                                                                                
कैवण में तौ नाराणी बाई भी औ कैय सकै, क वा तौ रोज़ सबाह-साम पाट ढक नै इज़ जावै! पण करै कांई, बिचारी...? अै पाट पुराणा पड़ग्या है, थोड़ौ बायरौ चालता ई अै हेटै पड़ जावै! इण पाटा नै मरम्मत री ज़रूत है घणी, पण अठै बिणा पैसा खराचियां कीकर मरम्मत करावै आ डोकरी..? अठै डोकरी आपरी अंटी ढीळी करै कोयनी, अर करै भी क्यूं..? औ मिन्दर व्हिनै बाप रौ कोयनी, औ तौ है न्यात रौ मिन्दर! अर आ न्यात, इन्नी क़दर करै कोयनी! इन्नू न्यात नै, भळै कांई फ़ायदौ..? अठै आ बात साफ़ है, क मिन्दर मांय बिराज़्या ठाकुरजी रौ पङै कोयनी परचौ अर ना अै दीखावै...भगतां नै, कोई चमत्कार! बिणा चमत्कार आ न्यात क्यूं क़दर करेला, इण मंदिर री..? क्यू कै अठै सुवाल है पैसा खरचण रौ, अर इण खलक़त मांय पैसा री क़दर हुया करै! वा भी हुवै, घणी! बिणा स्वारथ, आ न्यात पीसा खरचै कोयनी! अठै तौ स्वारथ रै खातर, औ नेता रुपी प्राणी अेक मोटौ भाटौ लाय मेलै ख़ालसा ज़मीन माथै! अर पछै उण माथै माळी-पान्ना चढ़ाय नै, उन्नै बणा देवै भैरूजी! पछै लोगां बिचै अफ़वाह फैला देवै, क “ज़मीन फाड़ नै, भैरूजी परगट व्या है!” अन्ध-भगति सूं वसीभूत हुय नै आ पब्लिग़, उण भैरूजी रुपी भाटा नै पूजणौ सुरु कर देवै! अर अठी नै औ नेता रुपी प्राणी चांदी कूटतौ रेवै, दूजी तरफ़ आ गेली-गूंगी पब्लिग़ लूटीजती रैवै! थोङौ बखत निकल्यां पछै, चमत्कार नी व्हेतौ दैख नै आ स्वारथी पब्लिग़ उण भाटा री पूजा करणी बंद कर देवै! पछै कांई...? औ नेता म्युनिसपल्टी दफ़्तर मांय आपरौ राज-नैतिक पोवर कांम में ले नै, फर्जी पट्टा बणवाद्या करै उण ज़मीन रा! इण पछै उण भौम रै माथै आलिस्यान बिल्डिंगां बणती जावै, अर औ नेता पैसा कूटतौ रैवै! ई तरै, औ बौपार दिण-दूणौ रात-चौगुनौ बढ़तौ जावै! अठै तौ भगवान भी पैसा कमावण रा साधन बण जावै, उठै इंसानियत री कांई कीमत...? इण वास्तै, मिन्दर रै मरम्मत री कोई गुंजाइस बाकी नी रैवै!                                                                    
चाणचूकै दीपटिया री लौ तेज़ व्है नै, च्यारुमेर सैच्यानणौ कर देवै! हमै सतभामा नै मालुम पड़ जावै, क दीपटिया रौ तैल अबै जल्दी ख़तम व्है जाई! अबै आ बापड़ी परेस्यान व्हे जावै, अर सोचण लाग जावै क “कित्तौ बैगौ खाणौ तयार कर नै, घरधणी रूप सिंग नै हेलौ पाडूँ...? दीपटिया रौ तैल ख़तम व्है जित्तै, रूप सिंग टैम माथै खाणौ खाय लै तौ म्हनै नैचौ व्है!” अबै भोजन बणावती वळा वा सोच में पड़गी, क व्हीनी जिंदगी अर दीपटिया री जौत मांय कित्तौ फ़रक रैयौ है...? दोणां रै मांय, अबै कित्तौ तैल बाकी रैयौ है...? इण जीवन मांय इत्तारा दुःख देख्यां पछै, अबै वा समझगी है क “इण उजाळा सूं तौ चोखौ है, इन्दारौ! क्यूंकि, औ तेज़ उजाळौ ज़ादा टीकै जैङौ नहीं! तैल ख़तम व्हेतां ई औ दीपटीयौ उजाळौ देवणौ बंद कर देवेला, इणी तरै ख़ुद रौ स्वारथ दीखतां ई औ रूप सिंग झट सारा नाता-रिस्ता छोड़ नै निरमोही रै तरै...स्वारथ खातर सारुं परौ निकळी, म्हनै छोड़ नै! अैङा मिनख रौ, कांई भरोसौ...? इन्नै गिया पछै, म्हारी ज़िंदगी में लारै रैवेला कांई..? ख़ाली, इन्दारौ अर सूनोपण! बस, पछै कांई..? औ इन्दारौ इज़ म्हारौ साथी बणियौ रैवेला, जिण मांय म्हांरा सारा दुःख-दरद लुक जासी!”
इण तरै, सतभामा लारळी गुज़री ज़िंदगी नै याद करता थकी अहसास करण लागी क “औ समाज लुगाई नै, मरद सूं नीची अर ओसियाली इज़ गिणतौ आयौ है! इत्तौ ई नी व्हिनै तौ, औ समाज मरद री पगरखी रौ ओहदौ भळै नवाज़ दीधौ है! व्यांरै वास्तै, इण पगरखी रौ कांई मोल..? जद चावै, जद मिनख इन्नै बदळ सकै!” पण पगरखी रौ मोल अेक सौंझीवान मिनख इज़ समझ सकै, क “अै पगरखियाँ मिनख रौ आखौ बोझ संभाळै, उण नै ऊबड़ खाबड़ रस्ता रा भाटा-ढींटा, कोपरिया-कांकरा, रेत-भाटा आद सगला सूं बचावती रैवै! पण, औ समाज पगरखी री पिचाण नी करै! औ समाज छोरा अर छोरी रै बिचै घणौ भेद राखै, अर दूभांत रै साथै छोरी नै दबा नै राखै! व्हिनै जळम माथै अठै तांई कैयद्या करै, क “कांई जळमियौ..? पडूतर मिळै, क “भाटौ जळमियौ, औरुं कांई जळमै..? इण समाज में रैवतां, सतभामा नै ख़ाली उत्पीड़न, क्रूरता अर सोसण रौ सिकार हूवणौ पड़ियौ!   
अै बातां याद करतां थकां व्हिनै याद आय जावै, क इन्नौ भरतार रूप सिंग कदेई आपरी मां रै सीखायाँ-सीखायाँ इण बेचारी नै घर सूं बारै काड दीवी ही! पण आ सतभामा लल्लू-पंजू काळजौ राखण वाळी नहीं, वा तौ आपरा ख़ानदान रा ऊचा आदरसा नै मानती थकी समाज रा बुगला-भगत ठेकेदारां ऊँ लड़ती रैयी! आपरै नैना छोरा गीगला रै साथै, आपरी नुवी दुनिया बसा लीवी! घर सूं काडी ज़रै औ छोरौ हौ, ख़ाली छ: महीना रौ! उण छोरा मांय वा आपरौ भाविसत संजोय नै, आपरै स्वाभिमान री जौत नै बुझण नी दीवी! इण कारण, आ कदेई आपरै पीहर कन्नी मूंडौ नी करियौ! औरुं नी आधुनिक छोरियां रै तरै, दूजौ ब्याव रचायौ! आ सतभामा तौ अैड़ी क़ायदा वाळी नार निकळी, जिकी आपरै अंतस मांय गांठ बांध लीवी, क “आ ढुला-ढूलियां री रम्मत तौ है कोयनी, क रोज़-रोज़ परणीजणौ व्है...? तिरिया तैल हमीर हठ, चढ़ै न दूजी वार!”                                       
इण पछै, वा कीकर दूजौ घर करती...? इण क़ायदा नै मानतां थकी, किन्नेई साम्ही दुखड़ा रौ पिटारौ खोल नै नहीं बैठी! किन्नेई गाम वाळा नै औ मौकौ नहीं दीधौ, क वै लोग इन्नी दसा रा मुद्दा नै गाम री चौपाल मांय चरचा रौ मसालौ बणावै..? वा तौ आपरै आत्म-बळ रै सहारै, सरकारी इस्कूल में मास्टराणी बण नै सैंदुखां सूं लड़ती रैयी!
इत्ता दुःख पाया पछै, भळै दुखां रौ अंत व्है कोयनी! अेक दिन हिवङा नै चोट पौंछावता समनचार, इन्नै कानां मांय आय पड़िया क “व्हिनौ घरधणी, दूजौ ब्याव रचाय दीधौ!” पण, बे-माता रा लिख्योड़ा लेख मिटै कोयनी! व्हीनी दूजी लुगावड़ी औलाद पैदा करणी चावै कोयनी, वा तौ लोड़ी लुगाई रै तरै आखा दिण कांच कन्नै बैठी-बैठी सिणगार करती रैवै, अर भरतार नै कुत्तौ बणा नै राखणी चावै! ज़रै अैङी लुगाइयां, कांई गरभ धारण करै..? जिकी ठेहरी, सुन्दरता री पुजारण..वा आपरा फुठरापणा नै, नास क्यूं करणी चावेला...? आ बात वा अच्छी तरै ऊँ जाणती, क “जापा री टैम, लुगाई रा फिगर पैला जैङा रैवै कोयनी! अबै आ निखेत गरभ धारण करै कोयनी, अर बात-बात में सासू रा पल्ला झटकै...पछै अै दोणू मां-बेटा, कित्ता दिण इन्ना नखरां सैन करै..? अेकर-अेक दिण आंती आय नै, दोणू मां-बेटा इन्नी चोटी पकड़ नै घर सूं बारै काड देवै!
अबै रूप सिंग नै आपरी ढळती उम्र रौ भान हुवै, अर इण दोणू मां-बेटा नै ख़ानदान आगै लिजावण री फ़िकर हूवण लागै! इण दोणां नै औ अटूट बिस्वास हौ, क “ख़ानदान नै आगै लिजावण वाळौ, छोरौ हूवणौ घणौ ज़रूरी! व्हिनौ दीधोङौ पांणी इज़, दोणू मां-बेटा रै कांम आवेला!” हमै तीजौ ब्याव करणौ रूप सिंग सारुं सौरौ कांम रैयौ कोयनी, क्यूंके “अबै बदन मांय, पैली जैङी मरदाना ताकत रैयी कोयनी! हमै तौ तीजौ ब्याव कर नै, आवण वाळी लुगाई रै साम्ही आब-आब हूवणौ है...!” औ कटु सत्य जाण नै, दोणू मां-बेटा फ़िकर रै जाळौ-जाळ में पड़ जावै! जित्तै इयांनै सतभामा री कैयोड़ी कटु बातां याद आय जावै, क “बखत आवेला म्हारौ भी, ज़रै थे दोणू मां-बेटा पूंछङी हिलावता आवोला म्हारै घरै!” हमै आ बात, साच व्हेती जा रैयी है, क्यूंके “सतभामा तौ पैली सूं, रूप सिंग रे बेटा री मां है!”
हमै सतभामा नै पाछौ घरै लावण रौ विचार करै, पण व्हिनै पाछौ लावण री बात...रूप सिंग नै, आवता खतरा री घंटी जूं दीसण लागी! क्यूंके व्हिनै आवतां ई सासू-बहू पाछी लड़ती रैवेला, अर बिचारा रूप सिंग री दसा व्है जावेला...धाण रा, दाणा रै माफिक..! जिको दाणौ, दोणू पाट बिचै, पीसिजतौ व्है...?
पछै कांई..? आपरौ झूठौ घमण्ड त्याग नै, रूप सिंगजीसा पूग गिया सतभामा रै दरुज़ा माथै! औ तौ खलकत रौ रिवाज़ है, क “ख़ानदान नै चिराग़ देवण वाळी, घरवाळी री घणी पूछ व्या करै! जिकी घरवाळी ख़ाली छोरियां इज़ पैदा करती रैवै, व्यानै अै स्वारथी मिनख मोसा बोलतां थकां कैवता रैवै, क रांड गंडूरणी हर सालौ-साल जणै, अर जण-जण नै पांच भाटा जणद्या! अबकली कांई चवंळौ पादी कांई...? कोई भळौ सरीखौ व्हेतौ-व्हेतौ हुवै, पण भाटौ तौ त्यार इज़ रैवै! चोखौ               हुवै, रांड मर जावै तौ...गेल छूटै!”
भांडा पड़वा री आवाज़ कानां मांय पङै, इण आवाज़ सूं सतभामा नै आ जावै चेतौ! वा साम्ही जोवै...तौ, कांई दैखै..? क “नैनौ गीगलौ माजंयोड़ा भांडा पटक नै उण माथै मूतण ढूकौ, हमै तौ सारी मैणत माथै पांणी फ़िरग्यौ..पाछा मांजना पड़ेला, भांडा!” वा रीस खाय नै, उण बिचारा नन्हा छोरा नै सौ नंबर री डांट पिलाय देवै क “कांई करै रै, हरामी..? अबै थारौ बाप अठै आय नै अै भांडा मांजेला कांई, कै थारी दादी मां अठै आय नै मांजेला भांडा..?” डांट सुणतां ई, वौ       नन्हौ छोरौ डरतां थकौ धूजण लागौ! अबै मूत रोकणौ इण बिचारा रै हाथ में कोयनी, पछै कांई...? औ कुचामादिया रौ ठीईकरौ, हमै भांडा छोड़ नै खन्नै पड़ी गाबा री गांठङी माथै मूतण ढूकौ! आपरै लाडला रा अै लखण दैख नै कन्नै बैठ्यौ रूप सिंग मुळकता थकौ कैवण लागौ, क “कांई करै रै, गेलसफा..? यूं कांई ठौड़-ठौड़ मूततौ जावै, थूं मिनख है, कै ढाण्डौ...?”
 “थूं मिनख है, कै ढाण्डौ.. थूं मिनख है, कै ढांडौ..?” अै सबद बार-बार सतभामा रै कानां मांय        गूंज़ण लागा! अै सबद सुणतांई हमै व्हिनै, करै ई तौ ख़ुद रौ अतीत साम्ही आवतौ दीसै.. करै ई दीसै रूप सिंग रौ अतीत..जूं ई रूप सिंग रौ अतीत आवतौ दीस्यौ..त्यूं ई वै सारी घटनावां आंख्यां रै साम्ही चितराम बण नै आवण लागी, अर व्हीनी आंख्यां सुळगता खीरा रै जूं व्हेग्यी लाल-सुर्ख! हमै व्हिनै अंतस में अै विचार हिल्लोरा लेवा ढूकै क औ तौ वौ इज़, हितगिंयौ निलज़ मिनख है! जिकौ कदेई इण नार रौ धणी बण्यौ, तौ कदेई उण नार रौ! ख़ुद रौ मरदपणौ दीखावतौ, औ गधेङौ किन्नी भी बाड़ मांय मूत नै आय जावै! अर पछै औ मिनख समाज री नज़रां में कठेई दोसी नी गिणीजै..? हमै औ रूप सिंग, इण वक्त कांई बोलतौ जा रियौ है..? क “यूं कांई ठौड़-ठौड़ मूततौ जावै, थूं मिनख है, कै ढाण्डौ...?” अबै आ बात गळै उतरै जैङी चीज़ कोयनी!” अठै तौ सफा-सफ, करणी अर कथनी में अंतर दीसै!  
बैना रौ कूठौ बाज्यौ, सतभामा संभल नै उठी! अर जाय नै, दरुज़ौ खोल्यौ! साम्ही, कांई दैखै...? व्हीनी नणंद सौदरा बाई ऊबी है! वा भाबी नै दैखतां ई, कैवण लागी क “भाबी, मांजीसा री तबीयत मोळी है, आप दोणू नै हमार इज़ बुलायौ है!” सौदरा बाई री बात सुणतांई लारळी सारी बिसरयोड़ी यादां मनड़ा मांय उछाळा लेवा ढूकी, क “अै तौ वै इज़ सासूजी है, जिका कैड़ा नीम्बड़ा री पत्तियां चाबता जूं बाड़ा बोलता हा! अर छेवट व्हिनै, घर सूं बारै काड नै इज़ नैचौ कीधौ! हमै जोग री बात है, जिका हमै बड़ा प्रेम सूं आफ़त पड़ियां ख़िदमत करावण सारुं म्हनै बुलाय रिया है! रामा पीर जाणै, क औ बदलाव कीकर आयग्यौ इयांरै मांय ...? कै तौ इयांरौ वस म्हारै माथै चालै कोयनी, कै अै सासूजी अंतस सूं दुखी अर आपरा हीन कृत सूं लाज़ा मरै...? अबै अै नैरा मीठा बोल रिया है, कांई अबै मैं व्यांरी नज़रां में चोखी व्हेग्यी..? म्हूं तौ वा री वा हूँ, बदळियौ है तौ ख़ाली बखत! हमै अै तौ बखत-बखत री बातां है, कालै इयांरौ टैम चोखौ हौ अर आज़ म्हारौ! अबै मै भी सासूजी जैङी निवङग्यी, तौ औरत रै हिरदै री विसालता कुण दैखेला...?
पछै कांई..? अंतस री आवाज़ रै सरै, वा तौ झट आडा-कूठा जड़ नै नैना छोरा नै ख़ाक मांय घाल्यौ...अर, दोणू भाई-बैन रै साथै-साथै वहीर हुई! रस्ता रा भाटा-ढींटा, कांकर-कोपरिया, रेत आद सूं बचता-बचता मिन्दर कन्नै जाय पूगा! आसियत रौ अन्धेरौ घणौ बधग्यौ, इण बखत गुग्गूड़ा, चिमचेङा अर दूजा कई निसाचर परिंदा रै कलरव री आवाज़ां बढ़ती जा रयी ही! अबै, तेज़ बायरौ चालण लागौ! बैना रा पुराणा पाट, बायरा रा तेज़ झोंका सूं हेटै आय नै पड़ै! सतभामा तौ भली-भांत जाणती ही, क अै पाट तौ ख़ाली अटकायोङा इज़ रैवै! जिका थोङौ बायरौ हालतां ई, अै पाट नीचै आय नै पड़ जाया करै! हमै मिन्दर मांय किन्नी मिनख रै बङन री खड़क-खड़क अवाज़, सतभामा रै कानां में पड़ी! अर अठी नै अेक चिमचेङा रौ झुण्ड इण तीनां रै माथा नै छूवतौ ऊपर सूं गुज़रियौ! झुण्ड रै ई तरै गुज़रण सूं, सररर सररर करती फरणाटै री अवाज़ हुवै! आ अवाज़, सगला जणा रा रुंगटा ऊबा कर देवै! सौदरा बाई तौ बिचारी अैङी डरै, क उण बापड़ी रै रुखसारां माथै आऊंङा तौ कांई ढळकै...? उण बिचारी रौ आखौ बदन डर सूं धूजण लागौ, अर वा धूजती-धूजती आपरी भाबी सूं अैङी चिपकग्यी के जाणौ वा नैनौ टाबर व्है..? डरती-धूजती वा रुन्दता गळा ऊं सतभामा सूं बोली क “भाबीजी, हमै आप जैज मती करौ! म्हनै तौ इण काळाकूट इंदारा सूं घणौ डर लागै! हमै जल्दी चालौ!” इत्तौ कैय नै वा डरती-डरती सतभामा रौ हाथ काठौ पकड़ ल्यौ! सतभामा व्हिनै जास देवती कैवण लागी, क “डरौ मती, बाईसा! हमार, चाला इज़ हां!” अबै कोई की नहीं बोलै, च्यारुमेर सायंती छा जावै! थोड़ी वळा पछै इण सायंती नै ख़तम करतौ, मिन्दर रै मांय पगा रौ खुङकौ हुवै! सगला जणा रै हिवड़ै मांय लखाव हूवण लागौ, क “जाणौ कठै ई, धरती कंप व्यौ है! नै अबै, सारी सृस्टी उणां रै च्यारुमेर घूमण लाग्ग्यी! पावन इस्थान मांय, औ कांई रोळौ...? इण बात नै सोचती-सोचती, सतभामा रौ माथौ फिरकली रे तरै घूमण लागौ! इत्ता में मद-भरी सिसकारी री अवाज़ सुणीजै, अठी नै कानां मांय चुम्मा-चुम्मी री मद-भरी अवाज़ां सुणीजै! अबै तौ सतभामा सूं, उठै ऊबणौ मुस्किल व्हेग्यौ! हमै तौ व्हिनै पक्कौ सक व्हेग्यौ, क “ज़रूर कोई निलज़ मरद-लुगाई सूना मिन्दर मांय, खोटा करम कर रिया है...?” अबै तौ व्हिनै दीमाग मांय बिसरयोड़ी घटना पाछी आंख्यां रै साम्ही घूमण लागी, क “किण तरै आ डोकरी नाराणी बाई व्हिनै माथै इलज़ाम लगायौ हौ...?” डोकरी रा अै बोल, “रोंडा, थारी जवानी माथै खीरा पङै! इण मिन्दर मांय, अठै आवौ ई क्यूं...काळौ मूंडौ कर नै..? कमसळ रोंडा थान्नै औ इज़ मिन्दर मिल्यौ, काळौ मूंडौ कर नै...?” दीमाग मांय, वौ मंजर बार-बार घूमण लागौ! अबै तौ सतभामा धार ल्यौ, क “हमै तौ कालै सबाह सबूं पैली डोकरी नाराणी बाई कन्नै जाय नै उण  रौ दीधोङौ ओळबौ उतारुंला, अर पछै कोई दूजौ कांम करूंला!” औ मतौ कर नै, सतभामा रूप सिंग नै कैवण लागी “गीगला रा बापू! इण सूना मिन्दर मांय कुण बड़ग्यौ है..? मांय नै, कांई रोळौ है..? चाल’र, दैखां!”
मांय नै बड़तां ई, व्यानै ज़ोरां री चिरळाटी री आवाज़ सुणीजै! इयांनै लोगां नै आवतां दैखतां ई मरद रै माथै लता जूं लिपटयोड़ी नार री परछाई, मरद रा बाहुङिया रा पांस सूं बारै निकळ नै बैना कन्नी आपरा पग बढ़ाया! पण व्हिनै न्हाटिया पैली, व्हीनी कळाई सतभामा रै हाथ री काठी पकड़ में आय जावै!
चांदा री किरणां उण नार रै मुंडा माथै पड़ै, उण च्यानणा में उण नार रौ मूंडौ दैखतां ई व्हिनी आंख्यां खुली री खुली रैय जावै! अर, मुंडा सूं इचरच री चीख़ निकळ जावै! वा रीसाणी व्है नै, कैवण लागै क “बाईसा, थे अै कांम करौ...? मांजीसा नाराणी बाई रौ नांम डूबाय नै, थे पोतरी बाईसा आपरौ नांम काड रिया हौ...?” आगै सतभामा की नी बोल नै व्हीनी कळाई छोड़ देवै! कळाई छूटतां ई, वा हिरणी रै तरै न्हाट नै आंख्यां रै आगै अदीठ व्है जावै! अबै लम्बी सांस खाय नै सतभामा, रूप सिंग सूं कैवण लागी क “हमै चालौ, मांजीसा आपांणी बाट नाळता व्हेला, कांई मालुम...सायत, डोगदर साब नै बुलावणौ पङै..?” थोड़ी ताळ पछै, सगला जणा वहीर व्हेता दीसै!                                                                                                                           
दूजा दिण सिंझ्या री वेळा, बङळा रै हेटै, सतभामा रूप सिंग री बाट नाळण सारुं आय नै ऊबग्यी! उठै ऊबी-ऊबी, वा कांई दैखै..? क, मिन्दरिया रा नुवा पाट लागग्या है! पण, व्हिनै हिरदै मांय वेहम अजेतांई ख़तम व्यौ कोयनी! वा सोचण लागग्यी, क “नुवा पाट लाग्यां सूं की सुधारौ नी व्है! अठै तौ चढ़ती जवानी अर बेलगाम व्योड़ा टाबरां नै, हमै कुण रोक सकै..? चाणचूकै व्हिनै मुंडा सूं अै सबद परा निकळै, क “खुला बैना में बड़न वाळां चोरां रौ काळजौ, हमै काठौ व्हेग्यौ है! अबै अै चोरी नी, डाका ई डालस्या! बैना रा पाट, इयांनै कीकर रोकेला...?”

कठिन मारवाड़ी सबद -: १ जाजौ – पति, २ काळौ – गेलो, पागल ३ माळौ – घोंसला ४ गूग्गूड़ो – उल्लू ५ बेवड़ी – दोहरी ६ घरगेटली – वह औरत, जो बिना काम किसी के घर चली जाती है ७ –अंटी – जेब ८ बायरौ – हवा  
                                   
 
म्हारी बात -: मारवाड़ रा रिहायसी मकान, दूजा परदेसां सूं नैरा दीसै! पेल-पोथ मकान रौ सिरे-दरुज़ौ घणौ ऊचौ नी व्है, औ करीब मिनखां रै माथा ऊँ नीचौ व्है! इण कारण जिकौ ई मिनख मकान मांय बड़ै, व्हिनौ माथौ ज़रूर नीचै झुक जाया करै! इण तरै, मांय बड़तां ई वौ “गृह स्वामी नै माथौ नवां नै सलाम करतौ दीसेला!” हमै मांय बड़ियां पछै पैलौ हिस्सौ जिकौ आवेला, जठै पगरखियाँ खोलणी ज़रूरी है...इण हिस्सा नै मारवाड़ी लोग “बैनो” कै बरसाळी कैया करै! इण हिस्सा सूं इज़ गुज़र नै, मिनख मकान रा दूजा ठांव मांय जा सकै! इण बरसाळी कै बैना रै पाहङै अेक कमरौ हुवै, जिण मांय बिराज़्या घर रा बूढ़ा-बडेरा निगराणी राख्या करे, क “घर में कुण बड़ रियौ है, अर घर सूं बारै कुण जा रियौ है ..?” मारवाड़ मांय रिहायसी मकान नै, मिन्दर रौ दूजौ रूप मान्या करै! इण खातर मकान रा बैना तंई, जूत्ता लावणा अलाऊ है! बारै सूं आयोड़ा मिनखां रै हाथ-पगां मांय जरम्स रैया करे, इण वास्तै बैना सू चौक मांय बड़ती ठौड़ पनाळ कन्नै अेक चौकी मेल्योड़ी व्है! जठै हाथ-पग धोवण सारुं, पांणी भरयोङी बाल्टी अर लोटौ मेल्योड़ी व्है! बठै हाथ-पग धोय नै मिनख घर रा दूजा ठांव में जा सकै! औ सारौ क़ायदा रौ कांम, बूढ़ा-बडेरा री देख-रेख में व्या करै! छेवट आपां औ कैय सकां क “इण तरै, औ बैनो घर री इज़्ज़त रौ रुखाळौ है!”
धान खरीदती वळा आपां पूरी बोरी रौ धान बारै काड नै, चैक कोयनी करां क “धान कैङौ है..?” बस ख़ाली हथाळी मांय मावै जित्तौ धान लेय नै दैख लां क “धान कैङौ है..?” इण तरै, मकान रौ बैनो दैख्यां सूं इज़ पूरा मकान री इस्थिति रौ जायाजौ लियौ जा सकै! आ इज़ परख ख़ानदान रै मिनखां री है! आंख्यां मांय हया, माथौ ढकयोङौ अर बडेरा नै दैखतां ई घूंटौ काड लेवै घर री बहू-बिनणीयां! वौ ख़ानदान इज़, मारवाड़ मांय ऊचौ आला ख़ानदान मानिज्या करै!
इण तरै औ बैनो मज़बूत हुवेला तौ, “घर री इज़्ज़त रा चोर अर माल रा चोर, घर कन्नै नी फटक सकेला! क्यूं के उठै, इण दोणू चोरां ऊँ रुखाळी करण वाळां बूढ़ा-बडेरा बठै मौजूद है!” इण ख़याल नै ल्यां, इण कहानी रौ नांम रखिज्यौ है...”बैना रौ पाट!” पाट रौ म्यानौ है, “रुखाळी करण वाळौ दरुज़ौ!” 
लिखारे दिनेश चन्द्र पुरोहित
रैवास – अँधेरी-गळी, आसोप री पोळ रै साम्ही, वीर-मोहल्ला, जोधपुर.
ई मेल – dinesh chandra purohit 2@gmail.com                                                                                                   
  
  

                                          
                         

2 टिप्पणियाँ:

  1. दिनेश चन्द्र पुरोहित says

    मेरी बात – मारवाड़ के रिहायसी मकान, दूसरे प्रदेशों के मकानों से अलग है ! सर्व प्रथम, मकान का दरवाज़ा ज़्यादा ऊँचा नहीं होता ! वह करीब सामान्य कद के इंसान के सर से नीचे होता है, यानि करीब नाक या गले तक ! आगंतुक सर झुका कर ही, घर में प्रवेश पा सकते हैं ! मारवाड़ में, गृह स्वामी को इज़्ज़त देने की परंपरा है ! इसलिए माना जाता है, घर में आने वाले आगंतुक को यह पहला सबक है..के, गृह स्वामी को सलाम करके इज़्ज़त बख्सना ! अब अन्दर आने के बाद जो पहला हिस्सा दिखाई देता है..वह है, जिसे बैना या इसे बरसाळी भी कह सकते हैं ! यहां जूत्ते खोलकर ही, घर के अन्दर दाखिल हो सकते हैं ! दाखिल होने के पहले, चौक से गुज़रना पड़ता है ! चौक में दाखिल होने की ठौड़ पर एक नाली होती है, जिसके पास ही एक चौकी रखी होती है! जिस पर, पानी भरी हुई बाल्टी व लोटा रखा होता है ! यहां आगंतुक अपने हाथ-पाँव, धोकर ही, चौक के आगे जा सकता है ! मारवाड़ में मकान को मंदिर या मस्जिद का दूसरा रूप माना जाता है, जहां बुरे काम नहीं किये जा सकते ! इसलिए पहले हाथ-पाँव धोते हैं, आने वाले आगंतुक ! इससे बाहर की गन्दगी से दूर रहकर, आगंतुक बाहर से आये जरम्स से छुटकारा पा लेता है ! घर का बैना एक मात्र ऐसा ठांव है, जहां से गुज़र कर ही मकान के दूसरे कमरों व चौक वगैरा में जाया जा सकता है ! इस बैना के पड़ोस में एक कमरा होता है, जिसे आज की भाषा में डाइनिंग-रूम कहते हैं ! यह जगह वही है, जहां घर के बूढे-बड़ेरे बैठा करते हैं ! यहां बैठे-बैठे वे बैना से गुज़रने वाले हर शख्स पर निग़ाह रखते हैं..के, घर में कौन आ रहा है, कौन जा रहा है..? इस तरह हम दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं, के “बैना घर की इज़्ज़त व धन का रखवाला है, क्योंकि यहाँ से गुज़रने वाले हर शख्स पर घर के बूढ़े-बडेरों की कड़ी निग़ाहें गढ़ी रहती है !
    अनाज खरीदते वक्त, हम कभी पूरी बोरी में भरा धान चैक नहीं करते हैं ! केवल हथेली में थोड़ा सा धान लेकर, जांच करके संतुष्ट हो जाते हैं ! मामूली सा धान चैक करने से मालुम पड़ जाता है, के “बोरी में भरा अनाज, किस तरह का होगा..?” इस तरह पूरे मकान को देखने की कोई ज़रूरत नहीं, केवल बैना की स्थिति का जायजा लेकर पूरे मकान की दशा मालुम की जा सकती है ! उसी तरह से, आला ख़ानदान के पुरुष व स्त्री की परख़ चाल-चलन और बोली-चाली से की जा सकती है ! आँखों में शर्म, सर ढका हुआ, व ससुराल के बड़े-बुजुर्गों को देखते ही पल्लू से घूंघट निकाल लेना...यही आला ख़ानदान की, बहू-बेटियों की पहचान है ! इसी तरह बड़े-बुजुर्गों के सामने नत-मस्तक होकर धीमी आवाज़ में बात करना, उनको सुबह-शाम झुक कर सलाम या पायलागन करना, हर छोटे-बड़े को सम्मान देने के अल्फ़ाज़ काम लेते हुए उन्हें पुकारना आदि गुण ऊंचे ख़ानदान के पुरुषों में पाए जाते हैं ! इसके अलावा खाना खाने की तहजीब, कपड़े पहनने के तौर-तरीके आदि से भी ऊंचे ख़ानदान की परख़ की जा सकती है ! ये सभी गुण, मज़बूत बैना या बरसाली से संभव है ! घर में बड़े-बुजुर्गों का सम्मान होने का अर्थ है, बैने की मज़बूती ! क्योंकि यहाँ बैठे बड़े-बुजुर्ग घर के माल व घर की इज़्ज़त की रखवाली करते हैं ! घर के हर छोटे-बड़ो को तहज़ीब व संस्कार सीखाने का पूरा दायित्व इन बड़े-बुजुर्गों के कंधो पर रहता है ! जब तक तहजीब और संस्कार बचे रहेंगे, तब तक घर की इज़्ज़त बची रहेगी ! इसी तरह घर की आमदानी और खर्च पर इन बड़े-बुजुर्गों की कड़ी निग़ाहें रहेगी, तब-तक घर में लक्ष्मी का वास रहेगा !
    इस तरह यह बैना मज़बूत होगा तो, घर की इज़्ज़त व धन-दौलत को कोई खतरा नहीं ! इस कारण ही, घर के बूढे-बड़ेरे बैना की रखवाली में हर वक्त तैनात रहते हैं ! यहाँ बैठकर वे घर की मान व मर्यादा बनाए रखते हैं, और इनके खौफ़ के कारण कोई चोर घर के अन्दर प्रवेश नहीं पा सकता ! चाहे वे इज़्ज़त के चोर हो, या धन-माल के ! इसलिए मैंने इस कहानी का नाम दिया है, “ बैना रौ पट ! ” “पट” शब्द का अर्थ है, दरवाज़ा ! जो चोरों से, माल व इज़्ज़त की रखवाली करता है !
    लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित
    dinesh chandra purohit 2@gmail.com


    दिनेश चन्द्र पुरोहित says

    माह भादो में बाबा रामसा पीर के मेले में पांच साल की बच्ची गुम हो गयी, वो कई साल बाद बाबा के मेले में बाबा की कृपा से मिली - कहानी "काळज़ा री कोर" पढेंगे उसके "वाक्यांश"
    "फिर उस सौदरा को गले लगाकर कहने लगे, के “बेटी सौदरा, अब ऐसी बिछोव वाली घटना हमारे जीवन में ना होगी ! हम सभी एक ही छत तले साथ-साथ रहेंगे, कल बाबा रामसा पीर और आशापुरा माताजी के दर्शन करके जोधपुर निकल पड़ेंगे ! अब तू बस, चलने की तैयारी कर !”
    सौभाग मलसा की बात सुनकर, और सोना रामसा व उनकी पत्नि को कैसा लगा होगा..? सौभाग मलसा अपने पूरे परिवार के साथ, ख़ुशी में झूमने लगे ! यह मंज़र अपनी आंखों से देखकर, बेचारे दोनों पति-पत्नि फ़िक्रमंद हो गए ! उनको खाली एक फ़िक्र लगी रही, के “सौदरा के बिना दोनों पति-पत्नि कैसे ज़िंदा रहेंगे..?” वो रामा पीर ही जाने, मगर इन दोनों के दिल हालत क्या हो रही होगी..? यह चिंता यहां किसी को नहीं, और उनके बिछोव से लगने वाले दिल-ए-ज़ख्म पर महरम लगाने वाला अब यहां कौन होगा..? यहां तो होने वाले बिछोव का दर्द, केवल इन दोनों को ही झेलना होगा, अब यह दिल झेल पायेगा या नहीं..? इन सब के जाने के बाद बच्ची को पालने वाले इन दोनों माता-पिता को, संभालने वाला अब कौन यहां मौज़ूद होगा..? वह सौदरा जो उनकी कालज़े की कोर है, वो तो अपने बिछुड़े परिवार के साथ खुशियों में झूमती जा रही थी ! उसे कंहा फ़िक्र, इन पालने-पोसने वाले मां-बाप की..जो इतने साल उसे अपन दिल का टुकड़ा समझते आ रहे हैं, और अब उसके जाने के बाद उनकी क्या दशा होगी..? उसने तनिक नही नहीं सोचा, इस बारे में ? वह तो उस कोयल के बच्चे की तरह व्यवहार कर रह थी, जो अंडे की अवस्था में कौए के घोंसले में मादा कोयल द्वारा रख दिया गया था ! उस अंडे से बच्चे के बाहर आने, व उसके पर निकलने तक कौए की जोड़ी का जो भी योगदान रहा..वो सारा योगदान भूलकर, कोयल का बच्चा उड़कर चला गया अपने असली कोयल परिवार के साथ..? जिसने न तो उसको पाला, न उसका बचाव उल्लू वगैरा उसके शत्रुओं से किया होगा..? मगर उसके पर निकलते ही, वो कोयल का जोड़ा झट आ गया बच्चे पर मां-बाप का हक जतलाने..? बस यही हाल रहा, सोना रामसा और उनकी पत्नि का ! उन बेचारों का तो रो-रो-कर बुरा हाल हो रहा था, उनकी आंखों के सामने श्रीमद भागवत में लिखा वो मंज़र सामने आ गया..जब अक्रूरजी के साथ श्रीकृष्ण व बलराम अपने असली मां-बाप के पास उनके मथुरा शहर जा रहे थे, और नन्द बाबा और यशोदा तड़फते दिल से उनको विदा दे रहे थे ! सौभाग मलसा के पूरे परिवार को ख़ुशी में झूमते हुए पाकर, बेचारे दोनों पति-पत्नि फ़िक्र में डूब गए ! उनका शिखिस्ता दिल निराशा में डूबता जा रहा था, बस उनका यह व्यथित दिल यही कह रहा था के “अब उन्हें कभी, बाई सौदरा के दीदार होंगे या नहीं..?” वे भी नन्द-यशोदा की तरह, अपने सूनी लाल-सुर्ख आंखों से इस सौदरा को जाते हुए देख पायेंगे..? आंसूओं से नाम उनकी आंखें कह रही थी “अब अपने इस काळज़े की कोर से दूर रहकर, ज़िंदा रह पायेंगे या नहीं...?”

    dineshchandrapurohit2@gmail.com दिनेश चन्द्र पुरोहित [लेखक एवं अनुवादक]


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